Dvand- The Internal Conflict Review देश मुख्यता दो हिस्सों में बंटा हुआ है. एक हिस्सा है शहरी इलाका, जिसे अर्बन
एरिया कहते हैं. दूसरा हिस्सा है रूरल यानी ग्रामीण क्षेत्र. दोनों की अपनी अपनी समस्याएं और जरूरतें हैं. इन्हीं में से एक
मनोरंजन के साधन को लेकर भी है. मेट्रो में घूमने वाले शहरी लोगों की दुनिया मल्टीप्लेक्स के इर्द-गिर्द जबकि ग्रामीणों के लिए
मनोरंजन के साधन कुछ और होते हैं. इश्तियाक खान की फिल्म द्वंद द इंटरनल कॉन्फ्लिक्ट गांव की कहानी के साथ ही ग्रामीण
महिलाओं की स्थिति और अन्य सामाजिक मुद्दों को दिखाते हुए सिस्टम पर चोट करती है. हालांकि ये फिल्म उन्हीं लोगों को ज्यादा
पसंद आएगी जो सामाजिक मुद्दों और सीरियस टाइप की फिल्मों में दिलचस्पी रखते हैं. इसलिए जो लोग रोमांच और सस्पेंस जैसी
फिल्मों के शौकीन हैं, उन्हें ये बोरिंग लग सकती है.
यह कहानी है कि किस प्रकार एक इनकार एक आदमी को उस व्यक्ति पर प्रतिशोध लेने के लिए बढ़ने का कारगर कार्य करता है।
प्रतिशोध इतना कठोर है कि यह पीड़ित के व्यक्तित्व पर संदेह डालता है।
भोला (इश्तियाक खान), भैयाजी (विश्वनाथ चटर्जी) और गाँव में कुछ और लोग गाँव में एक नाटक प्रस्तुत करना चाहते हैं, जिसके
लिए उन्होंने गुरुजी (संजय मिश्रा) से निर्देशन करने के लिए प्राप्त किया। गुरुजी गाँव आते हैं। प्रैक्टिस शुरू होती है, लेकिन भोला को
कोई भी भूमिका नहीं दी जाती क्योंकि उसका प्रदर्शन पर्याप्त नहीं था। भोला की जीलोसी अत्यंत होती है जब प्रमुख भूमिका
स्थानीय चाय विक्रेता चंदन (विक्रम कोचर) को दी जाती है। गुरुजी भोला को अपना सहायक बना देते हैं, लेकिन भोला असंतुष्ट
होता है क्योंकि उसने नाटक में अभिनय करने के लिए बहुत मेहनत की थी। उसने अपनी पत्नी, नैनी (ईप्शिता), को मानिपुलेट
किया कि वह सह-अभिनेत्री रज़िया (टीना भाटिया) की नाइटी उसके घर से ले आए और इसे गुरुजी के कमरे में रख दे। फिर उसने
यह ख़बर फैलाई कि गुरुजी का रिश्ता रज़िया के साथ है। यहां यह उल्लिखित किया जाता है कि रज़िया के पति (फ़ैज़ खान) ने शुरू
में उसे नाटक में अभिनय करने की अनुमति देने में असंज्ञा जताई थी, लेकिन गुरुजी ने चाहा था कि वह अभिनय करे। इस इस सो-
कही गई व्यवस्था की कहानी ने गुरुजी को बहुत प्रभावित किया। और इसे और बिगाड़ने के लिए, कुछ गाँववालों ने उससे बेहद
निराशा से गाँव छोड़ने के लिए कह दिया। इसके बाद क्या होता है?